Thursday 30 August 2012

Fashion or Trend

फैशन हमारे समाज का एक बहुत ही ज़रूरी हिस्सा है | वक़्त के साथ हेर चीज़ अच्छी  भी लगती है लेकिन फैशन के साथ साथ हमें इस चीज़ का भी ध्यान रखना चाहिए की हम किस देश , किस समाज और किस कल्चर का हिस्सा है | आज कल के बदलते दौर में फैशन की परिभाषा भी बदली है | आज कल के युवा युवती वेस्टर्न कल्चर को ज्यादा अपना रहे है या यूँ कहिये की वेस्टर्न की ज्यादा ही हवा चली हुई है |
         पहले के ज़माने में और अब के ज़माने में काफी फर्क़ आया है पहले के लोग अपनी संस्कृति को ध्यान में रखते हुए फैशन करते थे और ऐसा नहीं है की उसमें कोई कमी होती थी लेकिन वोह अपने कल्चर का ध्यान भी रखते थे लेकिन अब फैशन की परिभाषा थोड़ी बदली है लोग अब फैशन करते वक़्त यह नहीं सोचते की हमारा कल्चर क्या है या हम किस देश से है वह सारे के सारे जितने  भी वेस्टर्न तरीके है वह  अपना रहे है
           यह एक तरीके से अच्छा भी है की हम दुसरे मुल्कों के बराबर आ रहे है हर चीज़ में चाहे वोह कपड़े हो जूते हो मकेउप हो किसी चीज़ में पीछे नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की हम अपनी सभ्यता को भूल कर उनकी सभ्यता को अपना ले |
           आज कल के बदलते दौर में आप देखे की कितनी नयी और नायब चीज़े आ गयी है जिनका लोग  पहले सोच भी नहीं सकते थे  आज कल लड़कियां उँगलियों को खुबसूरत बनाने के लिए नेल आर्ट करती है और सलवार कमीज़ में भी अब आपको बहुत से प्रकार मिल जायेंगे जैसे कफ्तान ,अनारकली कुरते ,सी कट कुरते इस तरह भिन भिन प्रकार के डिजाईन मार्केट में आ गए है ताकि युवाओं को लुभाया जा सके| वेस्टर्न लुक में भी आज कल लॉन्ग टॉप का ज्यादा फैशिओं आ गया है युवतियां लॉन्ग टॉप ज्यादा प्रिफर केर रही है  |यह एक तरीके से अच्छा भी है इससे हमारी संस्कृति भी बची हुई है |
           अंत में बस यही कहना चाहूंगी की फैशन चाहे जैसा भी हो व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने वाला होना चाहिए |

ramzaan or eid

माहे रमज़ान- अल्लाह की तरफ से अता किया हुआ वह महीना जिसमे बेशुमार बरकते है। वह महीना अल्लाह ने जिसको सिर्फ और सिर्फ इसलिए बनाया ताकि हर मुसलमान उस एक महीने में सब कुछ भुलाकर सिर्फ अल्लाह की ज़ात से अपने आपको जोड़े और यह समझने की कोशिश करे की खुदा ने यह दुनिया क्यूँ बनायीं ,अपने दीं को समझे और यह समझे की हम सब एक है।
       रोज़ा रखना सिर्फ भूके रहने का नाम नहीं है बल्कि रोज़ा रखने के लिए अल्लाह ने इसीलिए कहा है ताकि हम यह समझ सके जिसको एक वक़्त का खाना नहीं मिलता है वह अपनी ज़िन्दिगी कैसे गुज़ारते है । इस महीने में कहा जाता है जितनी इबादते करो उतनी कम है ।छोटी से छोटी इबादत  का भी बहुत सवाब मिलता है ।
    यह मुस्लिम कैलेंडर के हिसाब से साल का नवां महीना होता है ।इसमें ३० दिन के हिसाब से ३ अशरे होते है ।पहले अशरे में आप खजूर से ,दुसरे अशरे में आप नमक से और तीसरे अशरे में आप गुनगुने पानी से रोज़ा खोल सकते है ।मुस्लिम समुदाय का मनना है की रमज़ान की २३ तारिख को कुरान पाक ज़मीन पर उतरा जिससे इस महीने की और भी ज़्यादा फ़ज़ीलत है ।
            रमज़ान में हर रोज़ा रखने वाले इंसान पर कुछ बातें मनना बहुत ज़रूरी होता है :-
१- रोज़ा रख कर झूट न बोले
२- बहुत ज़्यादा न सोये
३- समय बिताने के लिए टी.व् या फिर गाने न देखे
४- गलत काम न करे
५-किसी की बुराई न करे 
          रमज़ान एक बेहतरीन  महीना है अपने गुनाहों की माफ़ी के लिए,ज़कात के और खैरात के लिए ।वैसे तो हमेशा ही सबकी मदद करनी चाहिए लेकिन इस महीने में जितनी मदद हो सके दौलत से ,खाने से, कपडे से, करनी चाहिए । वह इंसान जो यह सब करेगा वोह अल्लाह की नज़रों में नायाब बन्दा होगा । यहाँ पर कहने का मतलब है की रोज़ा रखने का मतलब है की अल्लाह की दी हुई हिदायत को मनना और गरीब ,लाचार ,मजबूर लोगों की तकलीफों को समझना ।
रमज़ान शरीफ ख़तम होने पर यिद एक ऐसा त्योहार है जो दुनिया भर के मुसलमान पूरे जोश और खरोश के साथ मानते है ।ईद का चाँद देखते ही लोग तय्यारियों में लग जाते है ।लड़कियां चूड़ियाँ खरीदने निकल पड़ती है ।चाँद रात को मेहँदी लगाती है ।ईद  की ख़ुशी का सिलसिला तीन दिन तक चलता है। रमजान शुरू होते ही ईद की तय्यरियाँ भी शुरू हो जाती है ।खास तौर से लड़कियां इसमें खासी दिलचस्पी लेती है ।ईद की तय्यरियाँ ईद के आखिरी हफ्ते में ज़ोर  पकड़ती  है ।
ईद का खास मज़ा तो बच्चे ही उठाते है ।युवाओं में भी इस का खास क्रेज़ होता है । ईद के मौके पर अपने गरीब रिश्तेदारों को नहीं भूलना चाहिए अगर आप इस हैसियत में है तो उनके लिए नए कपडे खरीदे और ज़कात और खैरात के ज़रिये उनके घरों में भी ईद की खुशियों की रौशनी फैलानी चाहिए ।